दयानंद सरस्वती और आर्य समाज
इनका जन्म गुजरात के कठियावाड में 1824 ई में
हुआ था उनके बचपन का नाम मूलशंकर था|14 साल की आयु में मूर्तिपूजा का बहिष्कार
करके वे विद्रोही हो गये थे|कुछ ही समय बाद ज्ञान की तलाश में अपना गृह त्यागकर वह
साहित्य और संस्कृत भाषा के ज्ञानी बन गये|
दयानद सरस्वती ने 1863 ई से अपने विचारों का
प्रतिपादन करना शुरु किया|उनका मानना था कि ईश्वर केवल एक है जिसकी पूजा मूर्ति के
रूप में नही बल्कि जीवात्मा के रूप में करनी चाहिए|मनुष्य को ईश्वर द्वारा दिया गया
सारा ज्ञान वेदों में निहित है|वेदों को सच्चा और सभी धर्मों से हटकर बताया|इसी
सन्देश के साथ उन्होंने 1875 ई में बाम्बे में आर्य समाज की स्थापना की|बाद में
उसका मुख्यालय लाहौर स्थानांतरित कर दिया गया|
उनके द्वारा दिए गये विचारों का संग्रह
सत्यार्थ – प्रकाश में मौजूद है जो एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है|जिसमें जाति और वर्ग रहित
समाज,राष्ट्रीय,समाजिक एव धार्मिक रूप से संयुक्त भारत,विदेशी दस्ता से मुक्ति,विधवा–पुनर्विवाह
,प्राकृतिक विपदाओं में सहायता और सम्पूर्ण राष्ट्र में आर्य समाज की स्थापना की
कल्पना मुख्य थी|उनका मानना था की वेद सम्पूर्ण ज्ञान के स्रोत है जो विचार उनके
अनुकूल नही है उसको ठुकरा दिया और नारा दिया वेदों की और लौटो|इसके अलावा उन्होंने
धार्मिक पाखंड पर हमला करते हुए हिन्दू रुढिवादिता,जाति-व्यवस्था,मूर्तिपूजा,कर्मकांड,
पुरोहितवाद,चमत्कार,जीवहत्या इत्यादि की कड़ी आलोचना की और माना की जाति का
निर्धारण जन्म के आधार पर नही बल्कि कर्म के आधार पर होना चाहिए|हिंदी को मुख्य
भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने के कारण उत्तर भारतीयों में उनके विचारों का फैलाव
बहुत तेजी से हुआ और उनकी पहुच जनता तक आसानी से हुई|जो सामाजिक और राजनितिक रूप
से बहुत ही प्रभावशाली रहा|
आर्य समाज की स्थापना
आर्य समाज के अनुसार ईश्वर एक है सबको उसकी
उपासना करनी चाहिए|समाज कर्मफल और मोक्ष में विश्वास करता है| अध्यात्मिक चिंतन की दृष्टिकोण से यह सर्वश्रेष्ठ है|इसने समाज में हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए शुद्धि
आन्दोलन के साथ शिक्षा व्यवस्था को एक नई
ऊंचाई प्रदान की|लोगों का ध्यान परलोक के बजाय वास्तविक संसार के तरफ आकर्षित किया|इसके
प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं
1.वेद ही ज्ञान के स्रोत हैं
2.वेदों के आधार पर मंत्र पाठ करना
3.मूर्ति पूजा का खंडन
4.तीर्थयात्रा और अवतारवाद का विरोध
5.कर्म,पुनर्जन्म और आत्मा के बारबार जन्म लेने
पर विश्वास
6.एक ईश्वर जो निरंकारी है
7.स्त्री शिक्षा को बढ़ावा
8.बाल-विवाह और बहु-विवाह का विरोध
9. विधवा-विवाह का समर्थन
10.हिंदी और संस्कृत भाषा का प्रचार
इन मुख्य विचारों के अलावा भी और कुछ उदेश्य थे
जैसे ईश्वर के प्रति पितृत्व और मानव के प्रति भातृत्व की भावना,स्त्री पुरुष के
बीच समानता,न्याय की व्यवस्था,प्रेमपूर्ण व्यवहार|
आर्य समाज शिक्षा और खान-पान के मुद्दों पर दो
गुटों में बंट गया| एक समूह जो पश्चिमी शिक्षा और मांसाहार के पक्ष में था जिसे
कल्चर्ड पार्टी कहा गया जिसका प्रतिनिधित्व महात्मा हंसराज ने किया उन्होंने कहा की आर्य समाज के दस सिधान्तों में मांसाहार
के बारे में कुछ नही कहा गया है| बाद में अलग होकर महत्मा हंसराज ने 1886 ई लाहौर
में ओरिएण्टल एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की|दुसरे समूह का प्रतिनिधित्व स्वामी
श्रधानंद जिनको महात्मा कहा गया,ने किया जो शाकाहार को मानते थे उन्होंने गुरुकुल
पद्धति का समर्थन करते हुए 1901 ई में हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय
की स्थापना की|
इस प्रकार सुधारवादी आंदोलनों में दयानद
सरस्वती ने अपने विचारों से समाज को एक नई दिशा प्रदान की|वेदों के अस्तित्व को स्वीकारते हुए उन्होंने धार्मिक
पाखंडों को खुली चुनौती दी| उनके विचार तर्क पर आधारित थे|जो हमेशा समाज को सही
रास्ता दिखने में उपयोगी हैं|
Very well written
ReplyDeletety
DeleteGreat work
ReplyDeletety
DeleteVery nice sir 🙏🙏
ReplyDeletethnkx
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